गुढी पाडवा, जिसे संवत्सर पाडवो के नाम से भी जाना जाता है, महाराष्ट्र और कोंकणी समुदाय के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार नए संवत्सर की शुरुआत को दर्शाता है, जो 60 वर्षों के चक्र में आता है। प्रत्येक वर्ष का एक विशेष नाम होता है, और यह पर्व नई ऊर्जा, नई उम्मीद और नई शुरुआत का संकेत देता है। साल 2025 में गुढी पाडवा 30 मार्च, रविवार को मनाया जाएगा।
गुढी पाडवा 2025 की तारीख और समय
- मराठी शक संवत: 1947
- गुढी पाडवा: 30 मार्च 2025, रविवार
- प्रतिपदा तिथि आरंभ: 29 मार्च 2025, शाम 04:27 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 30 मार्च 2025, दोपहर 12:49 बजे
गुढी पाडवा का महत्व
गुढी पाडवा चंद्र-सौर कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है, जो चंद्रमा और सूर्य की स्थिति के आधार पर महीनों और दिनों का निर्धारण करता है। यह त्योहार महाराष्ट्र और कोंकणी समुदाय के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। इसी दिन कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगादी का त्योहार भी मनाया जाता है। दोनों त्योहारों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व लगभग समान है।
गुढी पाडवा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। यह त्योहार हमें प्रकृति के साथ जुड़ने और नए साल की शुरुआत में सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने का अवसर देता है।

गुढी पाडवा के रीति-रिवाज
गुढी पाडवा के दिन सुबह की शुरुआत तेल स्नान से होती है, जो हिंदू शास्त्रों में एक महत्वपूर्ण रीति मानी जाती है। इसके बाद नीम के पत्तों का सेवन किया जाता है, जो शरीर को शुद्ध करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार माना जाता है। घरों को रंगोली से सजाया जाता है और स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं।
गुढी पाडवा का सबसे प्रमुख रिवाज ‘गुढी’ लगाना है। गुढी एक सजावटी झंडा होता है, जिसे चमकीले कपड़े, नीम के पत्ते, आम के पत्ते और गुड़ की माला से सजाया जाता है। गुढी के ऊपर एक उलटा हुआ चांदी या तांबे का बर्तन रखा जाता है। इसे घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है, जो विजय और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गुढी पाडवा
गुढी पाडवा मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है, लेकिन इसका महत्व पूरे भारत में है। उत्तर भारत में गुढी पाडवा नहीं मनाया जाता, लेकिन इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। नवरात्रि के पहले दिन नीम और मिश्री का सेवन किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है।
गुढी पाडवा 2025: क्यों मनाया जाता है?
गुढी पाडवा का त्योहार न केवल नए साल की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि यह किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है और किसानों के लिए नई फसल की शुरुआत का संकेत देता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयां बांटते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
निष्कर्ष
गुढी पाडवा 2025 न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह नई शुरुआत, समृद्धि और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह परिवार को एक साथ लाता है और नए साल की शुरुआत में उम्मीद और सकारात्मकता का संचार करता है। गुढी पाडवा का यह पावन पर्व हमें प्रकृति के साथ जुड़ने और नए लक्ष्यों की ओर बढ़ने का संदेश देता है।
इस वर्ष 30 मार्च 2025 को गुढी पाडवा मनाकर नए साल की शुरुआत खुशियों और उत्साह के साथ करें।
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